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Mahila Aayog की तरह देश में क्यों मौजूद नहीं है पुरुषों के लिए कोई आयोग? क्यों नहीं होता मर्दों के साथ इंसाफ?

पुरुषों के लिए क्यों नहीं है आयोग? झूठे आरोपों में हज़ारों गंवा देते हैं जान !

हमारे देश में एक महिला के साथ अगर कुछ भी गलत होता है, तो उसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए ना सिर्फ पुलिस बल्कि अदालत से लेकर महिला आयोग तक मौजूद है। ये सभी जल्द से जल्द महिलाओं को न्याय दिलाने की मुहीम में जुट जाती हैं।

लेकिन, हमारे समाज में मौजूद पुरुषों के लिए कोई आयोग 21वीं सदी तक मौजूद नहीं है। ऐसे में, अगर किसी भी पुरुष के साथ नाइंसाफी होती है या किसी मामले में उसके खिलाफ झूठे आरोप लगा दिए जाते हैं। तो, वो शख्स किस दरवाजे को अपने इंसाफ के लिए खटखटाये? कहां वो अपने हक की बात रखे?

लेकिन, अफ़सोस ऐसा अभी तक हमारे देश में कोई भी आयोग नहीं बन पाया है..जो सिर्फ मर्दों के उत्पीड़न में उनकी मदद कर पाए? ऐसे में, कई आदमी तो निराशा के अंधेरे में कठोर कदम उठाकर अपनी जान तक दे देते हैं।

इसलिए आज बेबाक न्यूज़ लाइव की टीम आपको इस स्पेशल रिपोर्ट के जरिये बताएगी..कि, आखिर बिना पुरुष आयोग की मौजूदगी में कैसे एक पुरुष अपने लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ सकता है?

सबसे पहले यहां आपको ये जानकारी दे देते हैं कि, देश में राष्ट्रीय पुरुष आयोग बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही है। लेकिन, इस मांग को लेकर हर बार सुप्रीम कोर्ट में याचिका ख़ारिज कर दी जाती है। अब भले ही न्यायपालिका और सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से ना लिया हो।

लेकिन, पुरुषों को न्याय दिलाने के लिए देश में एक संस्था है जो इस काम को कर रही है।

इस संस्था का नाम मेन वेलफेयर ट्रस्ट है।

यहां गौर करने वाली बात ये है कि, इस संस्था के वालंटियर को भी कई तरह के उत्पीड़नों से गुजरना पड़ा है। इसलिए यह सरकार से पुरुष आयोग और पुरुष सहायता मंत्रालय बनाने की मांग कर रहे हैं।

देश के करीब 20 प्रदेशों में काम करने वाली यह संस्था देहरादून में हर रविवार को ऐसे पुरुषों के लिए मीटिंग आयोजित करती है, जिसमें व्यक्ति को सही सुझाव और मार्गदर्शन दिया जाता है।

मेन वेलफेयर ट्रस्ट, देहरादून चैप्टर के अध्यक्ष रितेश अग्रवाल हैं।

उनका कहना है कि हमारे देश में 50 ऐसे कानून है, जिनमें पुरुषों के बात सुनी ही नहीं जाती है और उन पर मुकदमे दर्ज कर दिए जाते हैं। घरेलू हिंसा, दहेज, सेक्सुअल हैरेसमेंट,बलात्कार और तलाक जैसे मामलों में महिलाओं की ज्यादा सुनी जाती है।महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए यह कानून जरूरी है, लेकिन बेगुनाह पुरुषों पर इन्हें थोपना भी ठीक नहीं है। इसलिए पुरुषों के न्याय और उनके हितों पर भी बात होनी चाहिए।

वहीं, एक रिपोर्ट के अनुसार देश में पिछले 1 साल में लगभग 1 लाख 18 हजार पुरुषों ने आत्महत्या की है। इनमें से 84 हजार के करीब शादीशुदा पुरुष थे, जो जिंदगी के संघर्ष से लड़ नहीं पाए।

जिसके चलते वो और उनकी संस्था पिछले 18 सालों से ये काम कर रही है। साल 2012 में संस्था ने एक हेल्पलाइन शुरू की थी, जिसमें एक टोल फ्री नंबर 8882498498 जारी किया गया। इस नंबर पर देश के किसी भी कोने का पीड़ित व्यक्ति संपर्क कर सकता है। देश के 40 शहरों में पुरुषों के लिए नियमित कार्यक्रम किए जाते हैं।

देहरादून में हर रविवार को तिब्बत मार्केट के सामने ही एक मीटिंग की जाती है। इसमें ऐसे पुरुषों अपने मामलों को लेकर आते हैं। यहां लोगों को समझाया जाता है कि आगे उन्हें क्या करना चाहिए?

गौरतलब है कि, सुप्रीम कोर्ट से अपील की जा चुकी है कि, विधि आयोग पीड़ित पुरुषों के सुसाइड केसों पर स्टडी करें और इसके आधार पर राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन का फैसला लिया जाए।

Bebak News Live

Written by Bebak News Live

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