सोनिया गांधी को 8 जून को सर्वसम्मति से कांग्रेस संसदीय दल (CPP) का अध्यक्ष चुन लिया गया. साथ ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने संसदीय दल के अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे बैठक में पास कर दिया गया. इस ऐतिहासिक पल के दौरान पार्टी के कई नेता भावुक भी दिखाई दिए और सभी ने खूशी से उन्हें एक बार फिर CPP का अध्यक्ष चुन लिया, लेकिन ये पहली बार नहीं है जब सोनिया गांधी को ये पद मिला हो, इससे पहले भी वह कई बड़े पद संभाल चुकी हैं.
ऐसा रखे थे राजनीति में पांव
पति की हत्या होने के बाद कांग्रेस के वरिष्ट नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा कर दी, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया और राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी घृणा और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि, ‘मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूंगी.’ उन्होंने लंबे समय तक राजनीति में प्रवेश नहीं किया. दूसरी ओर, पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व काल के बाद कांग्रेस 1996 का आम चुनाव भी हार गईं, जिसके कारण कांग्रेस नेताओं को फिर से नेहरू-गांधी परिवार के एक सदस्य की जरूरत महसूस हुई. उनके दबाव में, सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने 1998 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ली और 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं. राजनीति में कदम रखने के बाद उनका विदेश में जन्म हुए होने का मुद्दा उठाया गया. उनकी कमजोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया. उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कांग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोड़ा और इन मुद्दों को नकारते रहे.
वामपंथी दलों ने किया था समर्थन
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्री बनेंगे पर सोनिया गांधी ने देश भर में घूमकर खूब प्रचार किया, जिसके बाद सब को चौंका देने वाले नतीजों में (UPA) United Progressive Alliance को 200 से ज्यादा सीटें मिलीं. इसी के साथ सोनिया गांधी स्वयं रायबरेली, उत्तर प्रदेश से सांसद चुनी गईं. वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिये कांग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार का समर्थन करने का फैसला किया, जिससे कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों का स्पष्ट बहुमत पूरा हुआ.
सोनिया गांधी ने ठुकराया था प्रधानमंत्री पद
२००४ के चुनाव से पूर्व आम राय ये बनाई गई थी कि अटल बिहारी वाजपेयी ही प्रधान मंत्री बनेंगे पर सोनिया ने देश भर में घूमकर खूब प्रचार किया और सब को चौंका देने वाले नतीजों में यूपीए को अनपेक्षित २०० से ज़्यादा सीटें मिली. सबको अपेक्षा थी की सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी और सबने उनका समर्थन किया, लेकिन ऐसा नहीं हो सका फिर क्या था सोनिया गांधी ने स्वेच्छा से प्रधानमंत्री नहीं बनने की घोषणा की है. कांग्रेसियों ने इसका खूब विरोध किया और उनसे इस फैसले को बदलने का अनुरोध किया गया पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य कभी नहीं था. सब नेताओं ने मनमोहन सिंह का समर्थन किया और वे प्रधानमंत्री बने पर सोनिया को दल का तथा गठबंधन का अध्यक्ष चुना गया.