
किराएदार को सिनेमा हाल सौंपने के लिए 31 दिसंबर 2025 तक का दिया समय
अपील स्वीकार करते हुए कहा कि 1999 के रिट में 9 जनवरी 2013 को उच्च न्यायालय के फैसले और आदेश को रद्द किया जाता है. अदालत ने कहा है कि 31 दिसंबर 2025 तक किराएदार सिनेमा हाल को मालिक को सौंप दे. यह “प्रतिवादियों द्वारा सामान्य वचनबद्धता दाखिल करने और फैसले की तारीख से चार सप्ताह के भीतर किराया/उपयोग और कब्जे के शुल्क के सभी बकाया, यदि कोई हो, को चुकाने के अधीन होगा. कानूनी झगड़े में मुकदमेबाजी के दो दौर हुए और अंत में स्वर्गीय मुरलीधर अग्रवाल के कानूनी उत्तराधिकारी अतुल कुमार अग्रवाल ने केस जीत लिया और परिणामस्वरूप किरायेदार स्वर्गीय महेंद्र प्रताप काकन के कानूनी उत्तराधिकारियों को अब सिनेमा हॉल का कब्जा सौंपना होगा.
शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2013 के एक फैसले को खारिज कर दिया, जिसने मालिक के परिवार की बेदखली याचिका को खारिज कर दिया था और एक अपीलीय प्राधिकारी के फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें किरायेदार को सिनेमा हॉल का कब्जा जारी रखने की अनुमति दी गई थी. विवाद 1952 के एक पट्टा समझौते से उपजा है, जिसके तहत स्वर्गीय राम आज्ञा सिंह द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए किरायेदार ने सिनेमा परिसर पर कब्जा कर लिया था. उत्तर प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम 1947 के तहत पहले की मुकदमेबाजी किराएदार के पक्ष में समाप्त हो गई, लेकिन नए 1972 किराया नियंत्रण अधिनियम के तहत 1975 में बेदखली के लिए एक नया आवेदन दायर किया गया.