162nd Jayanti of Swami Vivekananda : महान आध्यात्मिक नेता, दार्शनिक और विचारक स्वामी विवेकानंद की 162वीं जयंती पूरा देश मना रहा है. विवेकानंद आदर्शवादी विचार हमेशा से ही युवाओं को प्रेरित करते आए हैं जिसमें उनका सबसे प्रमुख विचार ‘उठो, जगो और तब तक मत रुको जब लक्ष्य प्राप्ति न हो जाए’ है. वहीं, देश इस महान विचारक की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर मनाता है. राष्ट्रीय युवा दिवस के मौके पर देश भर में व्यक्तिगत विकास, समाज व निर्माण में सकारात्मक योगदान देने के लिए प्रेरित प्रोत्साहित करने को लेकर देश भर में सेमिनार, कार्यक्रम और विभिन्न प्रकार की कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं.
दो दिनों का रखा गया कार्यक्रम
वहीं, केंद्र सरकार 162वीं जयंती के अवसर पर नई दिल्ली के भारत मंडपम में विकसित भारत की थीम पर भारत यंग लीडर्स डॉयलॉग 2025 (11-12 जनवरी) कार्यक्रम आयोजित किया गया है. स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ और उनको घर में नरेन्द्र दत्त के नाम से पुकारा जाता था. उनके पिता विश्वास दत्त पाश्चत्य संस्कृति में विश्ववास रखते थे और अपने पुत्र स्वामी विवेकानंद को भी अंग्रेजी पढ़ाकर उसी ढर्रे पर ले जाना चाहते थे. लेकिन वह बचपन से ही काफी तीव्र बुद्धि के बालक और भक्ति भाव रहा था. साथ ही इसी बीच 1884 में विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई और घर का सारा भार विवेकानंद के कांधों पर आ गया. इस दौरान उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब थी इसके बावजूद भी उनमें अतिथियों का सम्मान बरकरार था. जब भी कोई अतिथि उनके घर पर जाता था तो वह उसे भोजन कराकर ही भेजते थे भले ही खुद को भूखा रहना पड़ जाए.
संन्यास के बाद विवेकानंद नाम पड़ा
रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनने के बाद विवेकानंद अपने तर्कों के साथ उनके पास पहुंच गए और उस दौरान परमहंस ने उन्हें देखते ही पहचान लिया. उसके बाद उन्होंने कहा कि यह वही शिष्य है जिसका हमें कई सालों से इंतजार था और संन्यास के बाद नरेन्द्र का नाम विवेकानंद पड़ा. इसके अलावा स्वामी विवेकानंद ने वेदांत और भारतीय दर्शन का प्रचार-प्रसार उस दौरान किया था जब पश्चिम की नजरों में भारत एक असभ्य देश था. उन्होंने दुनिया का ध्यान भारतीय दर्शन की ओर दिलाने का काम किया और देश का नाम विश्व पटल पर ऊंचा करने का काम किया. वहीं, साल 1893 में उनका शिकागो की धर्मसभा में उनके द्वारा दिया गया भाषण लोग एक टकी लगाकर सुन रहे थे. उसके बाद से भारतीय संस्कृति और उसके इतिहास के प्रति कई स्कॉलर और स्टूडेंट्स की जानने की जिज्ञासा जगी.