जम्मू कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने अपने ‘आवाम की आवाज’ रेडियो कार्यक्रम में 55 साल के कालीन कारीगर गुलाम हुसैन वानी की जमकर तारीफ की है. गुलाम हुसैन वानी ने प्राचीन कालीनों की बुनाई, मरम्मत और उन्हें नए अंदाज में पेश करने की कला के चलते इतनी तारीफें बटोरी हैं.
क्या है कालीन की खास बात?
गुलाम हुसैन वानी, खराब हो चुके या जल चुके प्राचीन कालीनों को नया अंदाज देने में माहिर हैं. गुलाम हुसैन की इस कला ने उन्हें घर-घर में पहचान दिलाई है. खास बात ये है कि गुलाम घर-घर जाकर ये काम करते हैं. उन्हें उम्मीद है कि एक दिन सरकार उनके हुनर, कड़ी मेहनत और सेवा के लिए उन्हें सम्मानित करेगी.
गुलाम हुसैन का सफर
कालीन बनाने में महारथ हासिल करने वाले गुलाम हुसैन वानी ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि मैंने कश्मीरी कारपेट की मरम्मत सबसे पहले शुरू की जिसके बाद से ईरानी कारपेट, अफगानी कारपेट और अब हर किस्म के कारपेट को मैं ठीक करता हूं, चाहे वो चाइनीज ही क्यों न हो.
गुलाम हुसैन वानी ने कम उम्र में ही कालीन बुनना शुरू कर दिया था. हालांकि बिचौलियों की वजह से उन्हें अपने काम की सही कीमत नहीं मिल पा रही थी. बिचौलिए बिक्री से होने वाली ज्यादातर कमाई को अपने पास ही रखते थे जिसकी वजह से गुलाम हुसैन वानी को कम पैसे ही मिल पाते थे. इसके बाद वानी ने कालीन बुनाई के बजाय उसकी मरम्मत का काम शुरू किया. इससे उन्हें दूसरी जगहों पर जाने और ज्यादा आमदनी का मौका मिला. अपने हुनर के लिए मशहूर गुलाम कहते हैं कि सर्दियों के मौसम में उनका काम काफी बढ़ जाता है.
गुलाम हुसैन वानी का बयान
कालीन के बारे में बात करते हुए गुलाम हुसैन ने बताया कि लोगों के फोन आते हैं, विंटर के सीजन में, कागड़ियां उलटती है उससे कारपेट जलते हैं. प्रेस करते वक्त भी कारपेट जलते हैं. ऐसे में मैं उन्हें ठीक करता हूं.
अपनी भावना को जाहिर करते हुए गुलाम हुसैन वानी कहते हैं कि उप-राज्यपाल ने भले ही अपने रेडियो कार्यक्रम में उनका जिक्र किया हो लेकिन उन्हें अब तक सरकार की तरफ से ज्यादा सहयोग नहीं मिला है. उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग सिर्फ अपने ‘पसंदीदा’ कारीगरों की ही मदद करते हैं.