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Movie Review: वरुण धवन की भतीजी ने दर्शकों को किया Entertain, इस Concept पर बैस्ड है ‘Binny and Family’ की Story Line?

Binny and Family Movie Review : माता-पिता के साथ बच्चों के रिश्तों पर ‘कभी खुशी कभी गम’ से लेकर ‘बागबान’ तक कई फिल्में बनी हैं.

Binny and Family Movie Review : ये फिल्में लोगों को काफी पसंद भी आई हैं. लेकिन ग्रैंड पैरंट्स यानी दादा-दादी और पोते-पोती के रिश्तों या उनके बीच की पीढ़ीगत दूरी पर हिंदी फिल्म लेखकों की कलम ना के बराबर ही चली है. लेकिन अब इसी विषय पर लेखक-निर्देशक संजय त्रिपाठी ने दर्शकों को एक खूबसूरत संदेश देने वाली भावुक फिल्म ‘बिन्नी एंड फैमिली’ बनाई है.

क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म लंदन में अपने मां-पापा यानी चारू शंकर-राजेश कुमार के साथ रहने वाली आजाद ख्याल और विद्रोही स्‍वभाव वाली बिंदिया सिंह उर्फ बिन्नी (अंजिनी धवन) की है. अंजिनी धवन ने अपनी एक्टिंग से फैन्स को काफी खुश भी किया है. फिल्म में उसकी जिंदगी हर साल तब बदल जाती है, जब उसके रूढ़िवादी दादा-दादी (पंकज कपूर-हिमानी शिवपुरी) बिहार से 2 महीने के लिए उनके साथ रहने आते हैं. बिन्‍नी के लिए यह साल के वो दो महीने होते हैं, जब उसके घर और जिंदगी, दोनों का हुलिया बदल जाता है. घर का बार बुक शेल्फ बन जाता है. दीवारों पर टंगी पार्टी की फोटो नदारद हो जाती हैं. उसकी मम्मी और उसकी शॉर्ट ड्रेसेज वापस अलमारी में पहुंच जाती हैं. उसकी लेट नाइट पार्टी बंद हो जाती है, क्योंकि दादा जी के मुताबिक, औरत जात इतनी देर तक बाहर रहे और कुछ ऊंच-नीच हो जाए तो वे कहां मुंह दिखाएंगे. दादी उसकी रिप्ड जींस को सुई-धागे से सिल देती हैं. कुल मिलाकर, उसके पूरे लाइफस्टाइल की वाट लग जाती है. इसलिए, वह दिन गिनती रहती है कि कब दो महीने बीते और दादा-दादी वापस जाएं. साथ ही इस फिल्म में बिन्नी अपने माता-पिता से ‘I Need My Own Space’ के लिए भी काफी फाइट करती है.

अंजिनी धवन का डेब्यू

फिल्म में अंजिनी धवन ने बिन्नी के किरदार से बॉलीवुड में कदम रखा है और उनकी एक्टिंग ने इस फिल्म में जान डाल दी है. उन्होंने बिन्नी के जोश उसकी आजादी की चाहत और दादा-दादी के साथ उसकी नोकझोंक को बहुत ही सटीक तरीके से पर्दे पर उतारा है. उनका अंदाज़ और एक्सप्रेशन्स बहुत ही नैचुरल लगते हैं. वहीं,पंकज कपूर और हिमानी शिवपुरी ने दादा-दादी के रोल में बेहतरीन काम किया है.

‘बिन्नी एंड फैमिली’ मूवी रिव्‍यू

फिल्म में दिखाया गया है कि ये दो पीढ़ियां यानी ‘ये क्या समझेंगे’ और ‘इन्हें कुछ नहीं पता’ वाले दायरे से निकलकर एक-दूसरे को सुनने, समझने और उसे हिसाब से खुद को थोड़ा बदलने की कोशिश करें तो पीढ़ियों की यह खाई ना सिर्फ मिट सकती है, बल्‍क‍ि बड़ों के अनुभव और बच्चों की ऊर्जा की जुगलबंदी दोनों की जिंदगी में नए रंग भर सकती है.

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Ayesha

Written by Ayesha

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