Ganga Water Quality: दिल्ली में एयर क्वालिटी खराब होने के बाद अब वॉटर क्वालिटी के खराब होने की भी खबरें आ रही हैं. दरअसल, उत्तराखंड के हरिद्वार में हर की पौड़ी के साथ-साथ 12 जगहों पर पानी की गुणवत्ता बी श्रेणी तक गिर दर्ज की गई है. इस स्तर के गिरने का मतलब है कि गंगाजल को बिना किसी ट्रीटमेंट के पीना सेहत को नुकसान पहंचा सकता है. हालांकि, गंगाजल से स्नान करने से कोई खतरा नहीं है. पानी की गुणवत्ता को चेक करने वाले एक अधिकारी का कहना है कि औद्योगिक कचरे को फेंकना और मानव मल इसकी सबसे बड़ी वजह हैं. उनका यह भी मानना है कि इससे गंगा नदी की सफाई पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, साथ ही जल की भी क्वालिटी बेहद खराब हो रही है.
B श्रेणी में दर्ज हुआ गंगा नदी का पानी
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ. राजेन्द्र सिंह का कहना है कि अगर डेटा की बात की जाए तो गाइडलाइन के मुताबिक फीकल कोलीफॉर्म (मानव मल) की अधिकतम मात्रा 500 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर) होनी चाहिए. वहीं, डेटा चेक करने पर इसकी वैल्यू 50 से 120 एमपीएन प्रति है 100 मि.ली. है. देखा जाए तो परीक्षण में सामने आई मात्रा गाइडलाइन से काफी नीचे है. यही वजह है कि गंगा नदी का पानी B श्रेणी में दर्ज हुआ.
विशेषज्ञों की मानें तो गंगा नदी के पानी की क्वालिटी को सुधारा जा सकता है क्योंकि इसका बहाव नीचे की ओर है. इसी स्थिति को देखते हुए ही यह जांच आमतौर पर उन स्थानों के पास की गई जहां सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ नदी में आकर मिलते हैं.
कैसे प्रदूषित हो रही है गंगा नदी ?
गुरुकल कांगड़ी यूनिवर्सिटी, हरिद्वार के रिटायर्ड वैज्ञानिक बी.डी.जोशी का कहना है कि सरकारी दावे अपनी जगह पर सही हैं क्योंकि जब भी वॉटर क्वालिटी की जांच की जाती हैं तो सबसे पहले इस चीज की जांच की जाती है कि नदी में यह अशुद्धियां कहां से आ रही हैं. जैसा की नदी के उस क्षेत्र के करीब 500 मीटर से 1 किलोमीटर तक का पानी पीने और नहाने लायक नहीं है. लेकिन जैसे- जैसे पानी बहता जाएगा वैसे-वैसे वह सामान्य होता जाएगा और इस पानी को दैनिक घरेलू कार्यों के उपयोग में लाया जा सकता है.