मंगलवार को यूपी के हाथरस में सत्संग में हुए मौत के तांडव ने हर किसी का दिल दहलाया हुआ है। आखिर, लोग सुनने तो भोले बाबा का सत्संग गए थे लेकिन किसने सोचा था कि यही उनका आखिरी दिन और सत्संग होगा? इस सत्संग में ऐसी भगदड़ मची कि, अब तक 130 से ज्यादा लोगों के जान गंवाने की पुष्टि की जा चुकी है। वहीं, इतने ही लोग अभी घायल हैं..जिनका अस्पताल में इलाज जारी है।
ऐसे में, कौन है ये भोले बाबा? जिसके चरणों की धूल पाने के लिए लोग अपनी जान गंवा बैठे। आइए जानते हैं।
असली नाम है सूरज
साकार हरि बाबा उर्फ भोले बाबा का असली नाम सूरज पाल सिंह है। वो कासगंज के पटयाली के रहने वाला है। उत्तर प्रदेश के एटा जिले में इनका जन्म हुआ। करीब 17 साल पहले पुलिस कांस्टेबल की नौकरी छोड़कर सत्संग करने लगा। नौकरी छोड़ने के बाद सूरज पाल नाम बदलकर साकार हरि बन गया। अनुयायी उसे भोले बाबा कहते हैं।
कहा जाता है कि गरीब और वंचित तबके के लोगों के बीच में इनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी। कुछ समय में लाखों की संख्या में अनुयायियों बन गए। उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश और राजस्थान में इनके अनुयायी फैले हैं।
सत्संग में मानव सेवा का देते हैं संदेश
ये बाबा अपने सत्संग में मानव सेवा का संदेश देते हैं। ज्यादातर सत्संग में लोगों से बाबा कहते हैं कि मानव की सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है। ये दावा करते हैं यहीं सर्व समभाव है यहीं ब्रह्मलोक है, यहीं स्वर्ग लोक है।
रह चुके हैं पुलिस में दरोगा
बताया जाता है कि, ये यूपी पुलिस में दरोगा हुआ करते थे। कुछ इन्हें आईबी से जुड़ा भी बताते हैं। बाबा पुलिस के तौर-तरीकों से परिचित हैं। बाबा आम साधु-संतों की तरह गेरुआ वस्त्र नहीं पहनते हैं। वह महंगे गॉगल, सफेद पैंटशर्ट पहनते हैं।
नहीं चलाते सोशल मीडिया
खास बात यह है कि इंटरनेट के जमाने में अन्य साधु संतो और कथावाचकों से इतर वो सोशल मीडिया से दूर हैं। बाबा का कोई आधिकारिक अकाउंट किसी भी प्लेटफॉर्म पर नहीं है। उनके फ़ेसबुक पेज आदि पर बहुत ज़्यादा लाइक्स नहीं हैं लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनके भक्तों की संख्या लाखों में है। उनके हर सत्संग के दौरान हज़ारों भक्तों की भीड़ दिखाई देती है।
कासगंज में है आश्रम
भोले बाबा का आश्रम कासगंज जिले के पटियाली तहसील क्षेत्र के बहादुरनगर गांव में मौजूद है। यह उनका पैतृक गांव भी है। भोलेबाबा का बहादुर नगर में बड़ा आश्रम बना है।
दावा है कि 26 साल पहले बाबा सरकारी नौकरी छोड़ धार्मिक प्रवचन करने लगे। नारायण साकार अपने भक्तों से कोई भी दान, दक्षिणा और चढ़ावा आदि नहीं लेते हैं लेकिन इसके बावजूद उनके कई आश्रम स्थापित हो चुके हैं। बाबा न किसी भगवान का नाम लेते हैं और न कोई साहित्य या सामग्री बेचते हैं। अनुयायियों को भोले बाबा के संत्सग का सालभर इंतजार रहता है।