Ram Prasad Bismil biography : रामप्रसाद बिस्मिल एक क्रान्तिकारी थे, जिन्होंने मैनपुरी और काकोरी जैसे कांड में शामिल होकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बिगुल फूंका था. वह एक स्वतंत्रता संग्रामी होने के साथ-साथ एक कवि भी थे और राम, अज्ञात और बिस्मिल के तखल्लुस से लिखते थे, उनके लेखन को सबसे ज्यादा लोकप्रियता बिस्मिल के नाम से मिली थी और आज उनके जन्मदिन के मौके पर शहीद क्रान्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की लिखी कवितायों के बारे में जानेंगे.
यहां जानें तराना-ए-बिस्मिल
बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से, लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से,
लबे-दम भी न खोली जालिमों ने हथकड़ी मेरी, तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।
खुली है मुझको लेने के लिए आगोशे आजादी, खुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से,
कभी ओ बेखबर तहरीके-आजादी भी रुकती है? बढ़ा करती है उसकी तेजी-ए-रफ्तार फांसी से।
यहां तक सरफरोशाने-वतन बढ़ जाएंगे कातिल, कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फांसी
मातृभूमि की जय हो
ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो…ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कान्तिमय हो,
अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में, संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो
तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो, तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो
वह भक्ति दे कि ‘बिस्मिल’ सुख में तुझे न भूले, वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो
गुलामी मिटा दो
दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा, एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा.
बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन, मैं उनकी अमरी को मिट्टी में मिला दूंगा.
यह फ़ज़ले-इलाही से आया है ज़माना वह, दुनिया की दग़ाबाज़ी दुनिया से उठा दूंगा.
ऐ प्यारे ग़रीबो! घबराओ नहीं दिल में, हक तुमको तुम्हारे, मैं दो दिन में दिला दूंगा.
बंदे हैं खुदा के सब, हम सब ही बराबर हैं, जर और मुफलिसी का झगड़ा ही मिटा दूंगा.
जो लोग ग़रीबों पर करते हैं सितम नाहक, गर दम है मेरा क़ायम, गिन-गिन के सज़ा दूंगा.
हिम्मत को ज़रा बांधो, डरते हो ग़रीबों क्यों? शैतानी क़िले में अब मैं आग लगा दूंगा.
ऐ ‘सरयू’ यकीं रखना, है मेरा सुखन सच्चा, कहता हूं, जुबां से जो, अब करके दिखा दूंगा.