दीपक त्रिपाठी की कलम से…….
बिटिया की विदाई…कभी सोचा है आपने उसकी अगुंली पकड़ कर उसे चलना सीखाने वाले पिेता के लिए जीवन का सबसे प्यारा पल कौन सा होता है….
एक कठोर पिता बिटिया की विदाई के समय पूरे समारोह के दौरान खामोश होकर सभी रस्मों को चुपचाप निभाता चला जाता है लेकिन मुंह से ज्यादा कुछ किसी को बोल नही पाता और उसके अंदर का ज्वार आंसू के रूप में अंत मे निकल ही जाता है।
ऐसा क्यों होता है चलिए आज आप विस्तारित रूप से समझिए।
जो बाप कठोरता की मूर्ति बनकर पूरा जीवन बिताता है वो आखिरी में बच्चा बन जाता है। बाकी सब भावुकता में रोते हैं,पर बाप उस बेटी के बचपन से विदाई तक के बीते हुए पलों को याद कर करके रोता है।
हर बाप घर के बेटे को गाली देता है धमकाता और मारता है पर वही बाप अपनी बेटी की हर गलती को नकली दादागिरी दिखाते हुए नजर अंदाज कर देता है।
बेटा अगर कुछ घण्टों के लिए ओझल भी हो जाय तो बाप को इतनी फिकर नही होती… उसे लगता है, गया होगा कहीं अभी आ जायेगा।
लेकिन बिटिया कहीं एक घण्टे के लिए बिना सूचना के न दिखे तो बाप पूरे घर को सर पे उठा लेता है और जब तक वो न मिल जाए उसे चैन नही मिलता।
बेटे ने कुछ मांगा तो एक बार डांट देता है, पर अगर बिटिया ने धीरे से भी कुछ मांगा तो बाप को सुनाई दे जाता है और जेब में रूपया हो या न हो पर बेटी की इच्छा पूरी कर देता है।
दुनिया उस बाप का सब कुछ लूट ले तो भी वो हार नही मानता, पर अपनी बेटी के आंख के आंसू देख कर खुद अंदर से बिखर जाए उसे बाप कहते हैं।
और बेटी भी जब घर में रहती है, तो उसे हर बात में बाप का घमंड होता है। किसी ने कुछ कहा नहीं कि वो बेटी तपाक से बोलती है, “पापा को आने दे फिर बताती हूं।”
बेटी घर में रहती तो माँ के आंचल में है, पर बेटी की हिम्मत में उसका बाप रहता है।
बेटी की जब शादी में विदाई होती है तब वो सबसे मिलकर रोती तो है, पर जैसे ही विदाई के वक्त कुर्सी समेटते,सामान लदवाते,गाड़ी तैयार करवाते बाप को देखती है तो जाकर बेसुध सी हो जाती है और लिपट जाती है, और ऐसे कसके पकड़ती है अपने बाप को जैसे माँ अपने बेटे को। क्योंकि उस बच्ची को पता है ये बाप ही है जिसके दम पर मैंने अपनी हर जिद पूरी की थी।
बाप खुद रोता भी है और बेटी की पीठ ठोक कर फिर हिम्मत भी देता है कि बेटा चार दिन बाद आ जाऊँगा तुझको लिवाने,ये कहकर वो हाथ छुड़ाकर चला जाता है किसी कोने में और उस कोने में जाकर वो बाप कितना फूट फूट कर रोता है ये बात सिर्फ एक बेटी का बाप ही समझ सकता है।
जब तक बाप जिंदा रहता है बेटी मायके में हक़ से आती है,भाई भौजाई से लड़ भी पड़ती है कोई कुछ कहे तो डट के बोल देती है कि मेरे बाप का घर है पर जैसे ही बाप मरता है,बेटी के लिए अपना ही मायका पराया लगने लगता है, वो न किसी से लड़ती है और न ही किसी बात का जिद करती है वो बेटी उस दिन अपनी हिम्मत हार जाती है, क्योंकि उस दिन उसका बाप ही नहीं उसकी वो हिम्मत भी मर जाती हैं जिसके सहारे सारे संसार को वो अपने कदमो में समझती आ रही थी। उसे लगता था कि मेरा बाप है तो मुझे किसी चीज की तकलीफ नही है। जब जो चाहूं मांग लूं,कह दूं,जिद कर लूं,झगड़ लूं ये सब मेरा हक है।
आपने भी महसूस किया होगा कि बाप की मौत के बाद बेटी कभी अपने भाई-भाभी के घर वो उछलकूद नहीं करती जो अपने पापा के वक्त करती थी। जो मिला खा लिया,जो दिया पहन लिया क्योंकि जब तक उसका बाप था तब तक सब कुछ उसका था,उसे कोई भी किसी चीज के लिए रोक टोक नही सकता था, यह बात वो अच्छी तरह से जानती है।
कहने का सार यही है कि बाप के लिए बेटी उसकी जिंदगी,उसका गुरुर,उसका खिलौना होती है। बाप जब भी बाहर से थका हारा आता है तो बिटिया एक गिलास पानी पिला दो बोलते ही बेटी पानी के साथ जो कुछ उपलब्ध हो घर मे वो खाने को भी लाकर देती है।
बाप की तबियत कभी खराब हुई तो वो बिटिया ही होती है जिसके गले से खाना नही उतरता जब तक बाप ठीक न हो जाए।बाप को कोई तकलीफ आये तो बेटी को भले ही ससुराल में सबसे लड़ना ही क्यों न पड़ जाए वो भागी चली आती है बाप की सेवा के लिए।बेटी के लिए बाप दुनिया की सबसे बड़ी हिम्मत और घमंड होता है पर बेटी यह बात कभी किसी को बोलती नहीं है।
बाप बेटी का प्रेम समुद्र से भी गहरा है जो बस बाप और उसकी बेटी ही समझ सकते हैं…..